सुकून के ~ कुछ पल

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      ♤  सुकून के ~ कुछ पल  ♤

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      कितनी भाग दौड़ मचा रखी है

                जिंदगी में.

        नौकरी ● पढ़ाई ● कमाई.


       जरा ठहरो तो, साँस तो ले लो.

         खुद को भी कुछ समय दो.

            कितना वक्त हो गया ना ...

                   खुद से मिले.


    कब अपने आप से बात की तुमने ?

    इत्मीनान से .... बोलो ? बोलो भी ?

         आह्ह... नहीं याद है ना ...

    क्योंकि तुम्हारे पास समय ही नहीं था.


        तुम तो आँख बन्द किये 

   घड़ी की सुई के साथ भाग रहे थे.

  कौन सा विजयपथ है वो, जिस पर 

सबके सब भेड़ चाल बनके भाग रहे हैं ? 


    चलो ... आज समय निकाल कर,

                  मिल भी लो खुद से.


        आइना उठाओ ! निहारो !

  ◆ कितना थक गयी हैं , ये आँखें ◆

 दिन रात मोबाइल और कम्प्यूटर घूर के.

      चलो किसी पार्क में, अकेले

      सुकून के कूछ पल बिता लो.


    ❌ ना .... हरगिज़ नहीं ... ❌

       मोबाइल मत ले जाना, वर्ना

           फिर कैद हो जाओगे. 

        देखो ! बच्चे खेल रहे हैं.

  अरे अरे , वो लाल टीशर्ट वाला बच्चा 

       कैसे दौड़ के बॉल पकड़ रहा है.

      ये लो पीछे से उस बच्ची ने उसे 

               धक्का दे दिया.

    कितना मज़ा आ रहा ना देखने में.

उठो ! तुम भी खेल सकते हो उनके साथ.

 क्या कहा ? शर्म आ रही है ? थकान है ?

     वो ऑन्टी लोग जो झुण्ड में बैठी हैं,

   वो क्या कहेंगी ? यही सोच रहे हो ना ?

   सब बहाने हैं. चुपचाप दिल की सुनो, 

     और बच्चों के साथ खुलकर खेलो.

          अरे रुक क्यों गए ?

     अच्छा वो झूला दिख रहा है, 

   पर वो तो अभी खाली होने से रहा.

 गुलाबी रंग के सूट में जो लड़की है ना 

शाम ढलने तक कब्ज़ा रखती है झूले पर.

    अरे देखो तो ... पार्क के गेट पर

        वो गुब्बारे वाला खड़ा है.

   🎈  एक लेलो खुद के लिए, 🎈

           जैसे बचपन में लेते थे.

    अब ये मत सोचो, कि वो सामने 

      चाय पी रहे अंकल और हम उम्र 

         तुम्हें पागल कहेंगे. कहने भी दो.

         ये लो भेलपूरी की क्या 

    तीखी मीठी महक मन मोह रही है.

          मुँह में पानी आ गया न.

           क्या ख्याल है , ले लो ? 

   उफ्फ्फ ..!! देखो फिर काम की बातें 

                    आ गयी ना दिमाग में.

       फिर अकेलापन लगने लगा ना.

          नहीं , ये नहीं होना चाहिए ,

                     मैं हूँ ना साथ में.

    चलो मेरे साथ वो राम मन्दिर है ना,

         अरे वही मन्दिर, जो रोज 

   दफ्तर जाते समय रास्ते पर पड़ता है.

     रोज तो भागम भाग में जाते नही,

         आज मैं साथ हूँ , चलो.


   कितनी सुगन्धित शाम होती है ना 

  मन्दिर की. देखो दीपक की रोशनी से 

   जगमगाता मन्दिर. अपार शाँति और

     विश्वास का भाव है , हर चेहरे पर.

   यही भाव मैं तुममें देखना चाहता हूँ.


           तुम कोई भी हो मेरे ....

        दोस्त, दुश्मन या अजनबी.

    क्या सोच रहे हो ..!!  मैं कौन हूँ ?


    मैं ... मैं वही सुकून हूँ , जिसे तुम 

            रोज की भाग दौड़ में 

           खुद से अलग कर देते हो.

              जाओ ! अब काम करो.

                   हम फिर मिलेंगे.


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                          / \   VIJAY KRISHNA

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