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सूर्य को जल चढ़ाते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए

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  इसमें कोई संदेह नहीं है कि पृथ्वी पर जीवन के संचार के लिए सूर्य अहम कारक हैं। जिस प्रकार सूर्य देवता अपनी ऊर्जा और अपनी शक्ति से पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं, उस हिसाब से भगवान सूर्य को प्रमुख देवताओं की गिनती में रखा जाता है। भगवान सूर्य के प्रति लोगों में गहरी आस्था है। शास्त्र कहते हैं कि अगर आप नियमित तौर पर भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हैं, तो इससे आपके अंदर धीरे-धीरे अहंकार, क्रोध और तनाव जैसी विकृतियों में कमी आने लगती है, तथा आपका जीवन अनुशासित होने लग जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि सूर्य को जल चढ़ाते समय, अगर गायत्री मंत्र का जाप किया जाए, तो इसका बहुत अधिक फायदा आपको मिलता है, और आपका मन लंबे समय तक शांत बना रहता है। वहीं अक्सर आपने लोगों को सुबह स्नान के बाद सूर्य देवता को जल अर्पित करते हुए देखा होगा। लोगों में यह भी धारणा है कि अगर आपको पूजा की कोई भी विधि नहीं आती है, तो आप एक लोटा जल सूर्य भगवान को अर्पित कर दें, तो आपकी पूजा पूर्ण मानी जाती है। बता दें कि भगवान सूर्य आरोग्य के देवता हैं, और सूर्य को जल चढ़ाने से बेहतर स्वास्थ्य के साथ ही सूर्य की असीम कृप

शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात

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  शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात  शिव_पुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से मिलता है क्या फल -   किसी भी देवी-देवता का पूजन करते समय उनको अनेक चीज़ें अर्पित की जाती है। प्रायः भगवान को अर्पित की जाने वाली हर चीज़ का फल अलग होता है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है की भगवान शिव को अर्पित करने वाली अलग-अलग चीज़ों का क्या फल होता है। शिवपुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को चढ़ाने से क्या फल मिलता है: 1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है। 2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है। 3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है। 4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए। शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है - 1. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है। 2. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मण

आप खुश कैसे रहे

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आप खुश कैसे रहे हमें वर्तमान में ही रहना चाहिए और इसे Best बनाना चाहिए क्योंकि न तो भूतकाल एंव न ही भविष्यकाल पर हमारा नियंत्रण है| “अगर खुश रहना है एंव सफल होना है तो उस बारे में सोचना बंद कर दें जिस पर हमारा नियंत्रण न हो” वह करिए जो आपको पसंद हो दिन में कम से कम एक घंटा कुछ ऐसा करें जो आपको पसंद हो जैसे खेलना, संगीत सुनना या लिखना| ऐसे कार्य आपको एक नयी उर्जा प्रदान करते है और आपको रिचार्ज कर देते है| अगर संभव हो तो हमें अपने करियर को इसी दिशा में मोड़ देना चाहिए| हमें अपना करियर उसी क्षेत्र में बनाना चाहिए जिसमें हमारी रुचि हो| अगर हम ऐसे क्षेत्र में कार्य कर रहे है जिसमे हमारी रुचि नहीं है, तो हमारे पास दो विकल्प है – 1. पहला यह की अपने कार्यक्षेत्र को बदल दो और करियर उस क्षेत्र में बनाओ जिसमें हमारी रुचि हो  और दूसरा की अगर ऐसा संभव ना हो सके तो वर्तमान कार्य को अपनी रुचि बना लो| अगर हम दोनों में से एक भी विकल्प नहीं अपनाते और ऐसे कार्य करते रहते है जिसमें हमारा मन नहीं लगता इस कारण से हम कभी भी अपना 100% नहीं दे पाते और ज्यादातर समय बर्बाद कर रहे होते है|   वर्तमान में जिएँ (Live

''दक्षिणावर्ती शंख'',

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  '' दक्षिणावर्ती शंख '', बदल सकता है जिंदगी, यकीन नहीं तो आज़मा कर देख लीजिये शंख की उत्पत्ति कैसे हुयी? इस परिपेक्ष्य में पौराणिक ग्रन्थ कहते है कि सृष्टि से आत्मा, आत्मा से प्रकाश, प्रकाश से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पति हुयी है। इन सभी तत्वों से मिलकर शंख का निर्माण हुआ है। ब्रहमवैवर्तपुराण के अनुसार शंख सूर्य और चन्द्रमा के समान देवस्वरूप है। इसके अग्र भाग में गंगा सरस्वती, पृष्ठ भाग में वरूण और मध्य में स्वयं ब्रहमा जी विराजमान है। दक्षिणावर्ती शंख रखने के लाभ दक्षिणवर्ती शंख को धन-स्थान पर रखने पर धन लाभ होता है। इस शंख को अन्न के स्थान पर रखने पर घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती है। दक्षिणावर्ती शंख को बेडरूम में रखने पर मन को शांति मिलती है और घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। दक्षिणावर्ती शंख में शुद्ध जल भरकर किसी स्थान पर छिड़कने से स्थान से संबंधित दुर्भाग्य दूर होता है। साथ ही उस स्थान की पवित्रता बनी रहती है। दक्षिणावर्ती शंख को घर में रखने से किसी जादू-टोने का कुप्रभाव भी खत्म होता है। शास्त्रीय मान्यता क

फिरोजा रत्न एक चमत्कारी पत्थर बदल देगा आपकी किस्मत

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फिरोजा रत्न एक चमत्कारी पत्थर बदल देगा आपकी किस्मत फिरोजा   को बरकत देने वाला  रत्न माना गया है. फिरोजा रत्न को ज्योतिष में  ग्रह शांति एवं भाग्य में शुभता बढ़ाने के लिए  उपयोग किया जाता है. यह एक अपारदर्शी उपरत्न है परन्तु वर्तमान समय में इसकी बहुत अधिक माँग है. फिरोजा का मूल रंग आसमानी है. कई बार यह आसमानी रंग से थोड़ा सा गहरा तो कई बार यह नीले और हरे रंग के मिश्रित रुप में पाया जाता है. शुद्ध नीले रंग के फिरोजे की माँग सबसे अधिक है. फिरोज़ा के फायदे इस उपरत्न को धारण करने से दाम्पत्य जीवन में समरसता बनी रहती है. संबंधों में सामजंस्यता तथा विश्वास प्रगाढ़ होता है. ऎसी धारणा है कि इस उपरत्न को धारण करने से जीवन में ख़ुशियाँ रहती हैं और भाग्य बली होता है. धारण करने वाले के अंदर नकारात्मक ऊर्जा का संचार नहीं होता, उसका बीमारियों से बचाव होता है. इसे दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है. लम्बी यात्राओं पर जाने से पहले इस उपरत्न को ताबीज के रुप में भी इस्तेमाल किया जाता है.  यह आपकी सामाजिक स्थिति और मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी करता है। फिरोज़ा मानसिक स्थिति को मज़बूत बनाता है और संवाद के अभ
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अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त      पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया 14 मई शुक्रवार को पूजा का मुहूर्त सुबह 05 बजकर 38 मिनट से 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा. तृतीया तिथि का समापन 15 मई 2021 की सुबह 07 बजकर 59 मिनट पर होगा.      हिंदू कलेंडर के अनुसार अक्षय तृतीया का त्योहार हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 14 मई, शुक्रवार को पड़ रही है। पुराणों में उल्लेख है कि अक्षय तृतीया सभी पापों का नाश करने वाली एवं सभी सुखों को प्रदान करने वाली तिथि है। इस दिन किया गया दान-पुण्य एवं सत्कर्म अक्षय रहता है अर्थात कभी नष्ट नहीं होता। वैसे तो इस दिन कोई भी व्यक्ति अपनी भावना और श्रृद्धा के अनुसार कुछ भी दान करके पुण्य लाभ कमा सकता है, परन्तु ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आप अक्षय तृतीया पर दान पुण्य और पूजा पाठ करें तो आपकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होंगी।      अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। इससे अक्षय पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है और महालक्ष्मी प्रसन्न होती ह

अक्षय पुण्य प्राप्त होता है--वैशाख मास में जलदान करने से

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  वैशाख मास में जलदान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है-- हिंदू कैलेंडर का दूसरा महीना यानी वैशाख मास 28 अप्रैल से शुरू हो गया है जो कि 26 मई तक रहेगा। स्कंदपुराण वैशाख मास के बारे में लिखा है कि- न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंङ्गया समम्।। अर्थ- वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है। वेद के समान को शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। इस मास को ब्रह्माजी ने सब मासों में उत्तम सिद्ध किया है। यह मास माता की तरह सब जीवों की इच्छाओं को पूरा करने वाला है । वैशाख माह का महत्व--      नारद जी के अनुसार ब्रह्मा जी ने इस महीने को अन्य सभी महीनों में सबसे श्रेष्ठ बताया है। उन्होंने इस महीने को सभी जीवों को मनचाही फल देने वाला बताया है। नारद जी के अनुसार ये महीना धर्म, यज्ञ, क्रिया और तपस्या का सार है और देवताओं द्वारा पूजित भी है।       उन्होंने वैशाख माह का महत्व बताते हुए कहा है कि जिस तरह विद्याओं में वेद, मन्त्रों में प्रणव अक्षर यानी ऊं, पेड-पौधों में कल्पवृक्ष, कामधेनु, देवताओं में विष्णु, नदियों में गंगा, तेज