चंद्रमा से जुड़े अद्भुत रहस्य

 चंद्रमा से जुड़े अद्भुत रहस्य
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१) चंद्रमा न होते तो राहु और केतु भी न होते। यही कारण है कि राहु और केतु से बनने वाले बहुत सारे योग लग्न कुंडली की बजाय चंद्र कुंडली के हिसाब से अधिक फलित होते देखे जाते हैं।


Example

क) ज्योतिष का मशहूर मुहावरा "राहु जिसके दस में दुनिया उसके वश में" लग्न से दशम की तुलना में चंद्र से दशम राहु हों वृष के या मिथुन के तो यह योग अधिक फलित होगा।


ख) गोचर में राहु केतु से बनने वाले योगायोग भी चंद्र से देखें जाएं तो अधिक स्पष्ट होते हैं।


२) चंद्रमा औषधीश हैं। अर्थात औषधियों के स्वामी। इस रहस्य को समझने की आवश्यकता है। एक उदाहरण लें, मान लीजिए किसी व्यक्ति को डायबिटीज है और इसका कारण शुक्र से संबंधित कोई अशुभ योग है। उस व्यक्ति को क्या औषधि ठीक करेगी इसका निर्धारण चंद्रमा से होगा। क्योंकि शुगर के तो अकेले आयुर्वेद में ही हजारों इलाज हैं। पर सब औषधि तो सब पर प्रभावी नहीं।


३) कुश (कुशासन) या दर्भ नाम की यह जो वनस्पति है यह बहुत अलौकिक है। वास्तव में यह सोम सूर्य और अग्नि तीनों महत् तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। इस पर बैठने मात्र से शरीर चंद्रमा की अमृतमयी रश्मियों को आकर्षित करने लगता है।


४) पुराणों में चंद्रमा के उत्पत्ति संबंधित कई कहानियां हैं , सभी कहानियों में एक चीज कॉमन है कि यह बिना गर्भ के जन्मे हैं।

जबकि गर्भ स्थापना में चंद्रमा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यही रहस्य कि एकादश में बैठा चंद्र गर्भाधान में विवाह के कुछ समय तक गर्भधारण में समस्या उत्पन्न करते हैं।


५) एक कहानी कहती है कि चंद्रमा की उत्पत्ति महर्षि अत्रि के नेत्रों से हुई।

अब चंद्र के चरित्र को समझने के लिए तनिक अत्रि जी को समझिए। क्योंकि पुत्र पिता का आत्मज होता है। पिता के गुण अवगुण उसमें आते ही हैं।


६) अत्रि चित्रकूट (इस शब्द के अर्थ पर ध्यान दीजिए)में रहते थे। अत्रि ब्रह्मा के पुत्र थे। कर्दम और देवहूति की पुत्री अनुसूया से इन्होंने विवाह किया। जिनसे दत्तात्रेय, दुर्वासा और चन्द्रमा का जन्म हुआ। ऋषभ, परशुराम और पृथु की तरह इन्होंने भी यज्ञ और कृषि संस्कृति का विकास किया।


७) एक कथा यह कहती है कि चंद्रमा का जन्म महामहाविद्या त्रिपुरसुंदरी की आंख से कहा गया। यही कारण कि महाविद्या की उपासना में सोम बहुत महत्वपूर्ण अवयव हैं।


८) बहुत सारे वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि चंद्रमा आकार और प्रकृति में बिलकुल उस जगह जैसा है जैसा कि पैसिफिक ओशियन। लाखों वर्ष पहले आकाशीय गुरूत्वाकर्षण के चलते प्रशांत महासागर वाली जमीन उपर उठ कर चली गयी। और पृथ्वी की परिक्रमा करने लगी।

अब देखिए अमावस्या के दिन भी चंद्रमा की शीतरश्मियां पृथ्वी पर आती हैं लेकिन चंद्र के अप्रकाशित हिस्से से।


यही कारण कि अमावस्या पितरों के निमित्त कर्मकांडों के लिए महत्वपूर्ण तिथि है। पितर भी चंद्रमा की शीतरश्मियों से ही तृप्त होते हैं। पितर अमावस्या की राह तकते हैं।


९) देवता पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि पूर्णिमा की अमृत रश्मियां शुद्धतम होती हैं।


१०) रोहिणी के देवता ब्रह्मा हैं। चंद्रमा रोहिणी पर आसक्त हैं। ब्रह्मा अर्थात सृजन। सृजन योनिसंभवा है मैथुनी सृष्टि में। यही कारण कि मंगल से अधिक चंद्रमा कारक हैं स्त्रियों के मासिक धर्म के।।

Thanks 🙏
Vijay Krishna 
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