MANGALI DOSH NIVARAN
जब किसी कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष लगता है। इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है।
यह दोष जिनकी कुण्डली में हो, उन्हें मंगली जीवनसाथी ही तलाश करना चाहिए, ऐसी मान्यता है।
मंगल दोष के लक्षण-
- प्रथम भाव में यदि मंगल हो तो विवाह में विलंब की स्थिति उत्पन्न होती है ।
- चतुर्थ भाव में यदि मंगल हो तो विवाह पश्चात वैवाहिक जीवन में सुख का अभाव हो जाता है ।
- सप्तम भावस्थ मंगल जातक के विवाह संबंध में बाधा कारक होता है।
- अष्टम भावस्थ मंगल जातक के कुसंगति में पड़ने के योग बनाता है।
- द्वादश भावस्थ अशुभ मंगल जातक के वैवाहिक जीवन में अत्यधिक खर्च एवं अप्रत्याशित हानि की स्थिति निर्मित करता है।
मंगल दोष के सरल उपाय-
- यदि जाने-अनजाने मंगल दोष रहते हुए विवाह हो भी जाए, तो दंपति को मंगल शांति करा लेनी चाहिए। शादी की प्रत्येकवर्षगांठ पर घर में मंगल यंत्र स्थापित करके मंगल शांति के 108 पाठ करने से वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।
- यदि मंगल योगकारक हो, तो 8 रत्ती का मूंगा पहनकर मंगलीक दोष का निवारण किया जा सकता है। मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है ।
- अगर जाने अनजाने मंगलीक कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है।
- जिस कन्या की कुंडली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह कर ले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है ।
- प्राण प्रतिष्ठित विष्णुप्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है।
- मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगलीक दोष शांत होता है।
- कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है।
- महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है। इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है।
- लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान्न एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल का अमंगल दूर होता है।
सबसे सरल उपाय है हनुमान जी की नियमित उपासना यह मंगल के हर तरह के दोष तो खत्म करने में सहायक है।
लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है।
हर मंगलवार को शिवलिंग पर कुमकुम चढ़ाएं इसके साथ ही शिवलिंग पर लाल मसूर की दाल और लाल गुलाब अर्पित करें।
लाल वस्त्र लेकर उसमें दो मुट्ठी मसूर की दाल बांधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।
बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
लाल कपड़े में सौंफ बांधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
मांगलिक दोष वाले जातक को हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए
मंगली लड़की को गणेश जी और मंगल यंत्र की पूजा करनी चाहिए
मांगलिक को मंगलवार को व्रत करना चाहिए, हनुमान मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाने से दोष प्रभाव कम होता है।
लेकिन अनेक योगों में कुंडली को मंगलीक दोष नहीं लगता- सूत्र-
यदि वर मंगलीक है, तो वधू का भी मंगलीक होना वांछनीय है। एक कुंडली के मंगल दोष को दूसरी कुंडली काट देती है। लेकिन अनेक योगों में कुंडली को मंगलीक दोष नहीं लगता एवं अन्य अनेक स्थितियों में एक की कुंडली दूसरे के मंगलीक दोष को काट देती है। जैसे:-
- यदि लग्न
में मंगल
मेष अथवा
मकर राशि,
द्वादश में
धनु राशि,
चतुर्थ में
वृश्चिक राशि,
सप्तम में
वृष अथवा
मकर राशि
तथा अष्टम
में कुंभ
अथवा मीन
राशि में
स्थित हो,
तो मंगल
दोष नहीं
लगता।
- चतुर्थ, सप्तम,
अथवा द्वादश
में मेष
या कर्क
का मंगल
हो, तो
दोष नहीं
होता।
- यदि द्वादश
में मंगल
बुध तथा
शुक्र की
राशियों में
हो, तो
दोष नहीं
होता।
- यदि बली
गुरु और
शुक्र स्वराशिस्थ
या उच्च
होकर लग्न
या सप्तम
भाव में
हों, तो
मंगल का
दोष नहीं
होता है।
- यदि मंगल
वक्री, नीच,
अस्त हो,
तो मंगल
दोष नहीं
होता है।
- यदि मंगल
स्वराशिस्थ अथवा
उच्च का
हो तो
मंगलीक दोष
भंग हो
जाता है।
- यदि मंगल-गुरु या मंगल-राहु या मंगल-चंद्र एक राशि में हों तो मंगलीक दोष भंग हो जाता है।
- सप्तम मंगल को गुरु देखता हो तो मंगलीक दोष कट जाता है। सप्तम में गुरु मंगल या शनि मंगल की युति शादी में देरी करवाता है।
- यदि एक की कुंडली में जहां मंगल हो, उसी भाव में दूसरे की कुंडली में प्रबल पाप ग्रह (राहु, सूर्य या शनि) हो, तो मंगलीक दोष कट जाता है।
- शनि यदि एक की कुंडली में 1 ,4, 7, 8, 12 वें भावों में हो और दूसरे का मंगल इन्हीं भावों में हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- यदि अधिक गुण 75 प्रतिशत, अर्थात 27 या अधिक मिलते हों, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- वर या कन्या में से एक मंगलीक हो और दूसरे की कुंडली में 3,6,11 वें भावों में राहु, मंगल या शनि हो, तो मंगलीक दोष समाप्त हो जाता है
- कुंडली में मंगल यदि स्वराशि (मेष, वृश्चिक), मूलत्रिकोण, उच्चराशि (मकर), मित्र राशि (सिंह, धनु, मीन) में हो तो भौम दोष नहीं रहता है।
- जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व, उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का, वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा।
- यदि 1,4,7,8,12 भावों में स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहों कि पूर्ण दृष्टि हो तो भी मांगलिक दोष नहीं लगता।
उपर्युक्त योगों से यह साफ है कि एक कुंडली मंगलीक तो हो सकती है, लेकिन मंगलीक दोष हो, यह आवश्यक नहीं। केवल पत्री में मंगलीक देख लेने मात्र से यह आवश्यक नहीं कि विवाह नहीं हो सकता। यह मानना कि मंगलीक दोष का असर 28 वर्ष बाद समाप्त हो जाता है, ठीक नहीं है। मंगलीक दोष सर्वदा विद्यमान रहता है, लेकिन पूजा-पाठ द्वारा इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। एक कुंडली का दूसरे के लिए मारक होना केवल मंगल पर ही आधारित नहीं होता। अन्य ग्रह, जैसे शनि, राहु, सूर्य भी ऐसी स्थितियां पैदा करने में सक्षम हैं।
विवाह प्रसंग में शनि मंगल से भी अधिक प्रभावशाली ग्रह है। यदि शनि लग्न, पंचम, सप्तम व दशम भाव में हो तो विवाह में बाधक बनता है। यदि शनि लग्नस्थ हो तो वैराग्य उत्पन्न करता है और विवाह होने के पश्चात् पत्नी से बहुत अच्छा संबंध नहीं होता। पंचम भावस्थ शनि मध्यायु के पश्चात् वैवाहिक जीवन में बाधाएं उत्पन्न करता है। सप्तमस्थ शनि विवाह में देरी करवाता है और विवाह की बात बार-बार बनते-बनते रह जाती है। ऐसे शनि के साथ मंगल, सूर्य या चंद्रमा की युति अन्यथा दृष्टि संबंध होने से शनि का अशुभ प्रभाव और बढ़ जाता है।
दशमस्थ शनि भी विवाह में देरी करवाता है और विवाहोपरांत भी जीवन में कुछ न कुछ कड़वाहट उत्पन्न करता रहता है। यदि शनि नवांश कुंडली में नीच राशि का हो तो भी वैवाहिक जीवन में अस्थिरता की स्थिति बनी रहती है, विवाह सुखमय नहीं होता, जातक का विवाह देरी से होता है या विवाह होता ही नहीं है अथवा विवाह होने के बाद अलगाव की संभावनाएं बनी रहती हैं।
सप्तम शनि की तो अवश्य ही काट देख लेनी चाहिए, क्योंकि यह द्विभार्या या वैधव्य योग देता है। इसके दोष निवारण के लिए ही घट विवाह या पीपल से विवाह प्रचलित हैं।
very good..👌😊😊👏👏
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