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शंख के इन उपायों से आप भी हो सकते हैं मालामाल

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  शंख   के   इन उपायों से  किस्मत बदल सकते हैं    आप भी  बहुत कम लोग जानते हैं कि कई ऐसे उपाय है जो लोगों की किस्मत को बदल सकते हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं शंख का एक उपाय. जी दरसल किसी भी धार्मिक आयोजन, कथा, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन आदि के समय शंख बजाने को अत्यंत शुभ माना जाता है. इसी के साथ कहा जाता है शंख से निकलने वाली ध्वनि से वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा और हानिकारक जीवाणु एवं विषाणुओं का नाश हो जाता है, जिससे स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है. वैसे आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि शंख में गाय का कच्चा दूध भरकर सोमवार को भगवान शिव पर चढ़ाने से क्या होता है.  पहले तो हम आपको बता दें कि समुद्र मंथन के समय निकलने वाले चौदह रत्नों में से एक रत्न शंख भी था. वहीं धार्मिक तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से शंख बहु उपयोगी है और शंख बजाने से कुंभक, रेचक तथा प्राणायाम क्रियाएं एक साथ होती हैं, इसलिए स्वास्थ्य भी सही बना रहता है. कहा जाता है मंगल ग्रह को अपने अनुकूल बनाने के लिए मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करते हुए शंख बजाना आसान और श्रेष्ठ उपाय है.  बुध ग्रह की प्रसन्नता के लिए शंख में जल

विजया दशमी पर शमी पेड़ क्यों पूजा जाता है?

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  विजया दशमी पर शमी पेड़ क्यों पूजा जाता है? अश्विन मास के शारदीय नवरात्र में शक्ति पूजा के नौ दिन बाद दशहरा अर्थात विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। असत्य पर सत्य की विजय केे प्रतीक इस पर्व के दौरान रावण दहन और शस्त्र पूजन के साथ शमीवृक्ष का भी पूजन किया जाता है। संस्कृत साहित्य में अग्नि को 'शमी गर्भ'के नाम से जाना जाता है।  वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपदा का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवालेे संकट का सामना कर सकता है।  हिंदू धर्म में विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन करते आए हैं। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी। गुजरात के कच्छ जिले,भुज शहर में करीबन साढ़े चार सौ साल पुराना एक शमीवृक्ष है।  भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व का अपना एक अलग महत्व है

दशहरे की पवित्र परंपरा : शुभता के प्रतीक नीलकंठ के दर्शन

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दशहरे की पवित्र परंपरा : शुभता के प्रतीक नीलकंठ के दर्शन नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो', इस लोकोक्त‍ि के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है। दशहरा पर्व पर इस पक्षी के दर्शन को शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है। जिसके चलते दशहरे के दिन हर व्यक्ति इसी आस में छत पर जाकर आकाश को निहारता है कि उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं। ताकि साल भर उनके यहां शुभ कार्य का सिलसिला चलता रहे। इस दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है, और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत्‌ होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है। कहते है श्रीराम ने इस पक्षी के दर्शन के बाद ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। विजय दशमी का पर्व जीत का पर्व है। दशहरे पर नीलकण्ठ के दर्शन की परंपरा बरसों से जुड़ी है। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की एवं ब्राह्मण हत्या के पाप से खूद को मुक्त कराया।